पुराणों के अनुसार रक्षाबंधन सिर्फ भाइयों को राखी बांधने का त्यौहार नहीं है।
सिर्फ भाइयों को राखी बांधने का प्रचलन कब से हुआ
महाभारत के अनुसार एक बार भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लग गई थी जिसके बाद पांडवो की पत्नी द्रोपदी ने अपना पल्ला फाड़कर ही श्रीकृष्ण के हाथ पर बांधा था। उस दौरान भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को उनकी जीवन भर रक्षा करने का वचन दिया। ऐतिहासिक कथा के अनुसार चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने राजा हुमायूं को राखी भेजी और हुमायु ने अपनी रक्षा का वचन रखते हुए गुजरात के राजा से रानी कर्णावती की रक्षा की।
तब से ही रक्षा बंधन की परंपरा शुरू हो गई। रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र यानी राखी बांधती है साथ ही भाइयों की दीर्घायु , समृद्धि व खुशहाली की मनोकामना करती हैं।
भविष्यपुराण के अनुसार रक्षाबंधन की कथा
जब राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से रक्षाबंधन के महातम्य के बारें में पूछा तब भगवान श्रीकृष्ण बोले – महाराज! प्राचीन काल में 12 वर्ष तक देव और असुरों में संग्राम हुआ, उसमें असुरों ने देवताओं के साथ इंद्र को जीत लिया था और स्वयं को तीनों लोकों का राजा घोषित कर दिया था।इस पर इंद्र देव ने बृहस्पति जी को बुलाकर कहा कि दैत्यों से आक्रांत हुआ मैं ना तो भाग सकता हूँ और ना ही ठहर सकता हूँ। युद्ध करना ही एक मात्र उपाय है फिर जो होगा देखा जायेगा।
यह सुनकर बृहस्पति जी बोले – इंद्र! क्रोध का त्याग करों, यह समय युद्ध का नहीं क्योंकि देश काल से विहीन कार्य सफल नहीं होते अपितु वे कार्य दूषित होकर अनर्थ ही करते हैं।
वे दोनों बातें कर रहे थे कि शचि इंद्र से बोली “आज चतुर्दशी का दिन है प्रातः पर्व होगा और मैं रक्षा विधान करूंगी जिससे आपकी जीत होगी।” ऐसा निश्चय कर पूर्णिमा के दिन शची ने मंगल करके इंद्र के दाहिने हाथ में रक्षा पोटली बाँधी। और इंद्र ने रक्षा बंधन किया, ब्राह्मणो ने मंगलाचरण किया और फिर इंद्र ऐरावत हाथी पर चढ़कर युद्ध के लिए चल दिए। उसे देख कर दैत्य सेना यूँ डरी जैसे काल को देख कर प्रजा डरती है। युद्ध में इंद्र की विजय हुई और वह तीनों लोकों का स्वामी हुआ।
दूसरी तरफ देवताओं द्वारा दानव पराजित हो, दुखी होकर दैत्यराज बलि के साथ गुरु शुक्राचार्य जी के पास गए और अपनी पराजय का वृतांत बतलाया। इस पर शुक्राचार्य जी बोले – दैत्यराज! आपको मन नहीं हारना चाहिए। काल की गति से जय पराजय तो होती ही रहती है इस समय वर्ष भर के लिए तुम देवराज इंद्र के साथ संधि कर लो क्योंकि इंद्र पत्नी शची ने इंद्र को रक्षा सूत्र बांधकर अजेय बना दिया है। उसी के प्रभाव से दैत्यराज तुम इंद्र से पराजित हुए हो। एक वर्ष तक प्रतीक्षा करो। उसके बाद तुम्हारा कल्याण होगा। अपने गुरु शुक्राचार्य के वचनों को सुनकर सभी दानव निश्चिंत हो गए और समय की प्रतीक्षा करने लगे।
हे युधिष्ठिर जय, सुख, पुत्र, पौत्र और आरोग्य का देने वाला, ऐसा रक्षाबंधन का प्रभाव होता है।
रक्षाबंधन की पौराणिक विधि
श्रावण की पूर्णिमा के प्रातः काल सूर्योदय के समय श्रुति और स्मृतियों के विधान के अनुसार स्नान करना चाहिए। शुद्ध जल से देव और पितरों का तर्पण कर उमाकर्म आदि करके ऋषियों का तर्पण करें। अपराहन के समय रक्षा पोटली बनावे जिसमें अक्षत (अखंडित चावल), सफेद सरसों, सोना, सफ़ेदचन्दन आदि होना चाहिए। फिर उस पोटली को रेशम के डोरे से बांध दें। उसे एक ताम्रपात्र में रखे और विधि पूर्वक उसको प्रतिष्ठित कर ले। आंगन को गोबर से लेप कर एक चौकोर मंडल बनाकर उसके ऊपर पीठ स्थापित करें। उसके ऊपर मंत्री सहित राजा को पुरोहित के साथ बैठना चाहिए। उस समय उपस्थित सभी मंगल ध्वनि करें तथा स्त्रियां आदि राजा की अर्चना करें। मंत्रो का पाठ करते हुए पोटली राजा के दाहिने हाथ में बांधे।
तत्पश्चात राजा को चाहिए कि सुंदर वस्त्र भोजन और दक्षिणा देकर ब्राह्मणों की पूजा करके उन्हें संतुष्ट करें। यह रक्षाबंधन चारों वर्णों को करना चाहिए। जो व्यक्ति इस विधि से रक्षाबंधन करता है वह वर्ष भर सुखी रहकर पुत्र,पौत्र और धन से परिपूर्ण हो जाता है।
रक्षाबंधन है क्या ?
पहले के समय में जीविका चलाने के लिए पुरुषों को घर से बाहर जाना पड़ता था और कई तरह की मुश्किलों और मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। इसीलिए रक्षासूत्र पुरुषों को बांधने की प्रथा थी। फिर वो चाहे पिता, भाई, पति या फिर पुत्र हो। महिलाये तो घर पर ही होती थी तो भला उन्हें रक्षा सूत्र की क्या आवश्यकता?
अगर राजा है तो अपने देश की उन्नति के साथ-साथ पडोसी देशों से देश और प्रजा की रक्षा भी करनी होती थी। यदि आम व्यक्ति है तो हर दिन की छोटी-मोटी परेशानियों के साथ ही कई बार कारोबार में भारी नुकसान और कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता था। महिलाओं का कार्य घर चलाना, बच्चों की परवरिश जैसे कार्य होते थे। जिसे आज के ज़माने में कोई ख़ास महत्व नहीं दिया जाता। हालाँकि घर सँभालने जैसा काम कल भी मुश्किल था और आज तो चुनौतिया और भी ज्यादा होती है। परन्तु समाज का एक तबका आज भी घर सँभालने वाली और बच्चे पालने वाली औरतों को ज्यादा महत्त्व नहीं देता। साथ ही आज तो हमारी माताएं और बहने घर की ज़िम्मेदारियों में पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलती है। और तो और नौकरी के साथ-साथ घर संभालना और बच्चों की परवरिश भी बखूबी करती है। आज हम कई मिसालें देखते है जब पूरे घर का भार उठाने और भाइयों को पढ़ाने और अच्छा भविष्य देने में बहनो का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसीलिए माताएं और बहनें भी इस रक्षाबंधन की हक़दार है।
पुराणों के अनुसार यदि घर का मुखिया या फिर वह व्यक्ति जो घर की सम्पन्नता के साथ-साथ परिवार के सभी सदस्यों के कुशल मंगल का ख्याल रखें उसे इस रक्षा सूत्र की आवश्यकता होती है। उसके अनुसार आज के ज़माने में भाई और पिता के साथ माताएं, घर की बेटी या फिर बहन सभी यह ज़िम्मेदारियाँ निभा रही है, तो उन्हें भी रक्षासूत्र की आवश्यकता है। इसीलिए इस रक्षाबंधन के त्यौहार में अब बदलाव आवश्यक है।
इस रक्षाबंधन घर के पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को रक्षा सूत्र बाँध कर उनकी वर्ष भर के लिए उन्नति, अच्छे स्वास्थ के साथ ही जीवन की हर मुश्किल से लड़कर जीत की कामना करें।
किस प्रकार मनाये रक्षाबंधन का त्यौहार
रक्षाबंधन का त्योहार सावन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस साल 2020 सावन के आखिरी सोमवार (3 अगस्त) पर रक्षाबंधन का त्योहार पड़ रहा है। इस बार रक्षाबंधन बेहद खास होगा क्योंकि इस साल रक्षाबंधन पर सर्वार्थ सिद्धि और दीर्घायु आयुष्मान योग के साथ ही सूर्य शनि के समसप्तक योग, सोमवती पूर्णिमा, मकर का चंद्रमा, श्रवण नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और प्रीति योग बन रहा है। इसके पहले यह संयोग साल 1991 में बना था, साथ ही इस साल भद्रा और ग्रहण का साया भी रक्षाबंधन पर नहीं पड़ रहा है। भद्रा काल में रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता।
रक्षाबंधन की विधि
रक्षाबंधन के दिन सुबह-सुबह उठकर स्नान करें और शुद्ध कपड़े पहनें। चावल, सरसों, रोली को एकसाथ मिलाएं। फिर पूजा की थाली तैयार कर दीप जलाएं। थाली में मिठाई रखें। इसके बाद भाई को पीढ़े पर बिठाएं। अगर पीढ़ा आम की लकड़ी का बना हो तो सर्वश्रेष्ठ है।
रक्षा सूत्र बांधते वक्त भाई को पूर्व दिशा की ओर बिठाएं। वहीं भाई को तिलक लगाते समय बहन का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। इसके बाद भाई के माथे पर टीका लगाकर दाहिने हाथ पर रक्षा सूत्र बांधें। राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारें फिर उसको मिठाई खिलाएं।
रक्षाबंधन मुहूर्त 2020
रक्षाबंधन अनुष्ठान का समय- 09:28 से 21:14
अपराह्न मुहूर्त- 13:46 से 16:26
प्रदोष काल मुहूर्त- 19:06 से 21:14
पूर्णिमा तिथि आरंभ – 21:28 (2 अगस्त)
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 21:27 (3 अगस्त)
यदि हो सके तो इस बार राखी पुराण के अनुसार मनाये, रेशम के कपड़े में अक्षत, सफ़ेद चन्दन, सफ़ेद सरसों, जौ, दूर्वा और सोना रखकर पोटली बनालें और रेशम के धागे में सी कर बांधे।
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